श्री जगन्नाथ रथ यात्रा: भक्ति, आस्था और संस्कृति की चलायमान परंपरा
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भारत भूमि विविध धार्मिक आस्थाओं और परंपराओं की भूमि है। इन्हीं में से एक अनुपम और दिव्य पर्व है श्री जगन्नाथ रथ यात्रा। यह यात्रा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह भारत की लोक-आस्था, समर्पण और सांस्कृतिक एकता की एक चलायमान गाथा है।
श्री जगन्नाथ कौन हैं? पुरी (उड़ीसा) में स्थित जगन्नाथ मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण को उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ पूजा जाता है। यहां तीनों को लकड़ी की मूर्तियों के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। यह रथ यात्रा हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को मनाई जाती है, जब भगवान स्वयं भक्तों के बीच आते हैं और नगर भ्रमण करते हैं।
रथ यात्रा का आरंभ और महत्व यह यात्रा पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक होती है, जहाँ भगवान कुछ दिन अपनी मौसी के घर (गुंडिचा मंदिर) विश्राम करते हैं। विशालकाय तीन रथ नंदिघोष (जगन्नाथ), तलध्वज (बलराम), और दर्पदलन (सुभद्रा) भक्तों द्वारा खींचे जाते हैं। यह दृश्य न केवल भक्तिभाव का प्रतीक है, बल्कि यह दर्शाता है कि भगवान स्वयं अपने भक्तों के बीच आकर लोककल्याण का मार्ग अपनाते हैं। भक्ति की शक्ति और समरसता रथ यात्रा जाति, धर्म, वर्ग, भाषा और क्षेत्र की सीमाओं को मिटा देती है। यहाँ राजा और रंक एक ही रस में डूब जाते हैं। स्वयं उड़ीसा का राजा भी ‘पहंडी’ में शामिल होकर भगवान के रथ को झाड़ू लगाता है
यह विनम्रता और दास्यभाव का अनुपम उदाहरण है। विश्वव्यापी उत्सव आज रथ यात्रा केवल उड़ीसा तक सीमित नहीं रही। भारत के लगभग हर बड़े शहर अहमदाबाद, मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, जयपुर, कोटा से लेकर न्यूयॉर्क, लंदन, मॉरिशस, सिडनी तक यह उत्सव श्रद्धा और उत्साह से मनाया जाता है।
ISKCON संस्था ने इस उत्सव को वैश्विक पहचान दी है। सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संदेश श्री जगन्नाथ रथ यात्रा हमें यह सिखाती है कि भगवान अपने भक्तों के साथ चलते हैं, उनके दुःख हरते हैं और जीवन को सरल बनाते हैं। रथ यात्रा ‘चलायमान धर्म’ का प्रतीक है, जो हमें बताता है कि धर्म केवल मंदिरों तक सीमित नहीं बल्कि समाज, सेवा और संवाद में भी जीवित है।
रथ यात्रा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि भारतीय जीवनदर्शन की साक्षात झलक है। यह मानवता, सेवा, सहिष्णुता और समरसता का उत्सव है। हमें इस पर्व से प्रेरणा लेनी चाहिए कि कैसे हम अपने जीवन में भक्ति, विनम्रता और सामाजिक समर्पण को स्थान दें। जय जगन्नाथ
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