राजसी गौरव से जनसेवा तक: महाराव भीम सिंह द्वितीय की प्रेरणादायक गाथा

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Jun 26, 2025 - 20:14
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राजसी गौरव से जनसेवा तक: महाराव भीम सिंह द्वितीय की प्रेरणादायक गाथा

कोटा रियासत के अंतिम शासक महाराव भीम सिंह द्वितीय (14 सितंबर 1909 – 20 जुलाई 1991) ने केवल 1940–47 के बीच शासन नहीं किया, बल्कि आजादी के बाद राजस्थान के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, भीम सिंह द्वितीय ने पिता उमेद सिंह द्वितीय के निधन के बाद 1940 में कोटा के सिंहासन पर आरोही हुए। उन्होंने तुरंत ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल होकर द्वितीय विश्व युद्ध में कप्तान बनने के बाद 1948 तक मेजर के पद तक पहुंचे। जब भारत में राजशाही का सूर्य अस्त हो रहा था, तब कोटा रियासत के अंतिम महाराव भीम सिंह द्वितीय ने देशभक्ति, नेतृत्व और जनकल्याण की ऐसी मिसाल कायम की, जो उन्हें अन्य राजाओं से अलग खड़ा करती है।

- नवाचार और समाजसेवा :

राज्य को एक आधुनिक रियासत बनाने के लिए उनकी योजनाएं थीं विशेषकर शिक्षा, स्वास्थ्य और प्रशासनिक सुधार। उन्होंने बड़े अस्पतालों, न्यायालय परिसर, पुलिस कॉलेज, फ्लाइंग स्कूल और सरकारी आवासों के निर्माण हेतु करोड़ों रुपये दान किए - एकीकरण का क्षण : 15 अगस्त 1947 को भारत संघ में कोटा की याचिका पर हस्ताक्षर करने वाले भीम सिंह को 1948 में राजस्थान की पहली राजप्रमुख का सम्मान मिला। हालांकि कुछ माह बाद वे उपराजप्रमुख हुए और यह पद 1956 में खत्‍म हुआ

- वैश्विक चौहद्दियों का अनुभव :

स्वतंत्रता के बाद भीम सिंह ने 1956 में भारत के प्रतिनिधि के रूप में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में हिस्सा लिया । वे 1959 से राजस्थान वन्यजीव संरक्षण बोर्ड के अध्यक्ष रहे और 1969 में सिंगापुर चैंपियनशिप में भारत के कप्तान भी थे 

- खेलों और निजी जीवन :

शूटिंग: 1976 ओलंपिक और 1978 एशियाई खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया।परिवार: 1930 में राठौर राजकुमारी शिवकुमारी से विवाह; तीन संतानें बृजराज सिंह, इंदिरा और भुवनेश्वरी

 - विरासत और योगदान :

राजनीति भारतीय राज्य संघकरण में अहम भूमिका, राजप्रमुख पद, जनसेवा अस्पताल, अधिवक्ता आवास, फ्लाइंग स्कूल व शिक्षा संस्थान, राष्ट्रीय-आंतर्राष्ट्रीय भागीदारी UNO प्रतिनिधि, शूटर, वन्यजीव संरक्षण, शाही परंपरा 1971 में राजघराने की गद्दी व सुविधाएं हटने के बाद भी सम्मानित राजसी व्यक्तित्व बने रहे, महाराव भीम सिंह द्वितीय केवल एक पारंपरिक शासक नहीं थे बल्कि आधुनिक भारत के उदारवादी राजाओं में से एक थे, जिन्होंने कोटा को एक उन्नत दृष्टिगामी रियासत बनाया और स्वतंत्र भारत की नींव में सक्रिय योगदान दिया।

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- राज्य के विकास में योगदान :

महाराव ने शासन को ‘प्रजा हिताय’ सिद्धांत पर चलाया। उन्होंने:

  • कोटा मेडिकल कॉलेज, फ्लाइंग स्कूल और न्यायिक परिसरों की स्थापना की,

  • जनसेवकों के आवास और पुलिस प्रशिक्षण केंद्रों का निर्माण करवाया।

उनका यह दृष्टिकोण उन्हें एक ‘राजा’ से कहीं आगे, एक ‘सेवक’ बना देता है।

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