जयपुर के संस्थापक राजा सवाई जय सिंह द्वितीय: विज्ञान, वास्तु और वीरता की मिसाल
story by mhr news media house rajasthan

जयपुर, 27 जून: भारत के प्रमुख ऐतिहासिक नगर जयपुर के स्थापक महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय न केवल एक कुशल शासक थे, बल्कि एक वैज्ञानिक, खगोलशास्त्री और दूरदर्शी योजनाकार भी थे। उनका जीवन आज भी राजस्थान की सांस्कृतिक और बौद्धिक पहचान का प्रतीक बना हुआ है।
सवाई जय सिंह द्वितीय का जन्म 3 नवंबर 1688 को हुआ था और मात्र 11 वर्ष की उम्र में वे आमेर के राजा बने। मुगल सम्राट औरंगज़ेब ने उन्हें “सवाई” की उपाधि दी, जिसका अर्थ है "एक से अधिक प्रतिभाशाली"। उन्होंने अपने शासनकाल में आमेर से बाहर एक नया नियोजित शहर बसाने की योजना बनाई, जिसे आज जयपुर के नाम से जाना जाता है। जयपुर की स्थापना 1727 में हुई थी, जिसे वास्तुशास्त्र और शिल्पशास्त्र के सिद्धांतों पर विद्याधर भट्टाचार्य जैसे विद्वानों की सहायता से बसाया गया था। यह भारत का पहला योजनाबद्ध शहर माना जाता है, जिसकी सड़कों, चौकों और बाजारों को खास ढंग से डिज़ाइन किया गया।
सवाई जय सिंह की खगोलशास्त्र में गहरी रुचि थी। उन्होंने दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी में विशाल वेधशालाएं बनवाईं, जिनमें जयपुर का जंतर मंतर आज भी यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में खड़ा है। यहां बनाए गए खगोलीय यंत्र आज भी वैज्ञानिक दृष्टि से अद्भुत माने जाते हैं। राजा ने अपने शासनकाल में धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा दिया, मंदिरों, धर्मशालाओं और यज्ञों के माध्यम से वैदिक परंपराओं को पुनर्जीवित किया। उन्होंने अश्वमेध और वाजीपेय जैसे वैदिक यज्ञों का भी आयोजन किया, जो उस युग में विलुप्त हो चले थे।
राजा जय सिंह ने 1743 में इस संसार से विदा ली, लेकिन उन्होंने एक ऐसी विरासत छोड़ी जो आज भी न केवल जयपुर, बल्कि भारत की संस्कृति, विज्ञान और स्थापत्य की पहचान बनी हुई है। विशेष तथ्य: जंतर मंतर में 19 खगोलीय यंत्र मौजूद हैं जयगढ़ किले में बनी 'जयवाना' तोप विश्व की सबसे भारी पहियों वाली तोपों में मानी जाती है जयपुर का नक्शा 9 खंडों (ग्रहों) के अनुरूप बनाया गया था
What's Your Reaction?






