कोटा की अमिट गाथा: राजा कोटिया भील की वीरता जिसने इतिहास को सीना तानकर जीया
story kota ka raja kotiya bhil indian storng man

कोटा। राजस्थान के कोटा जिले में प्राचीन समय में भील सरदार रघुवा ‘कोटिया’ भील का शासन था। चंबल नदी के पूर्वी तट पर स्थित इकेलगढ़ किले से वे शासन करते थे, और माना जाता है कि इसी वीरता के कारण शहर का नाम “कोटा” पड़ा
- षड्यंत्र और पराक्रम :
1241 में, बूंदी के हाड़ा राजपूत राजा समर सिंह (या जैतसिंह) ने कोटिया भील को मित्रता के नाम पर दावत दी। लेकिन दावत में भारी मद्यपान और तल में छिपे विस्फोटक ये सब उनकी चालाकी का हिस्सा थे, नशीली अवस्था में जब कोटिया भील और उनके सरदारों पर हमला हुआ, तो अचानक फायरिंग की गई जिसमें कई साथी मरे, लेकिन कोटिया के वीर आत्मबल ने उन्हें लड़ने से नहीं रोका।
- मृत्यु के बाद भी युद्ध :
भयंकर युद्ध के दौरान वे सालार गाजी नामक सेनापति को मार गिराए। लेकिन उन्हें बेरहमी से गरदन धड़ से अलग कर दिया गया। असाधारण बात ये रही कि उनका सिर कटने के बावजूद उनका शरीर करीब 100 फ़ीट तक तलवार लेकर लड़ता रहा, जब तक कमर भी अलग नहीं हो गई
- विरासत और स्मृति : नाम की उत्पत्ति :
“कोटिया भील” के नाम पर ही ‘कोटा’ नगर की आधारशिला पड़ी, प्राचीन किला: इकेलगढ़ का किला तीन ओर ऊँची चट्टानों और चौथी ओर चंबल नदी से बँधा थाnऐसी प्रकृति संरचना जिससे दुश्मन को नज़र नहीं आता था, लोक स्मृति: कोटिया भील की वीरगाथा आज भी स्थानीय लोककथाओं, मंदिरों, स्मारकों, और “भीलपोड़ी” नामक प्रवेश द्वार के रूप में जीवित है नाम और स्थान रघुवा ‘कोटिया’ भील, शासन इकेलगढ़ किले से षड्यंत्र दावत, शराब, विस्फोटक सब के बावजूद लड़ने की अदम्य शक्ति वीर अंत गर्दन कटते ही भी युद्ध जारी 100 फ़ीट तलवार उठाकर किले की संरचना प्राकृतिक सुरक्षा चंबल और ऊँची पहाड़ियाँ आज की पहचान ‘कोटा’ नाम, लोक स्मृति, पर्यटन स्थली, भीलपोड़ी दरवाजा राजा कोटिया भील की यह अमर गाथा ना केवल कोटा की धरोहर है, बल्कि साहस, आदर्श मर्यादा और अनंत प्रतिकूलता से लड़ने की अदम्य इच्छाशक्ति का प्रतीक भी है।
https://www.youtube.com/watch?v=ansG8p4dRDU
What's Your Reaction?






