गागर में सागर की तरह होता है गुरु।
Gurupurnima special news MHR

गुरु पूर्णिमा का पर्व भारत की महान परंपरा का प्रतीक है, जो गुरु शिष्य परंपरा को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि जीवन में ज्ञान, संस्कार और सही दिशा देने वाले गुरु का स्थान सर्वोच्च होता है। गुरु वह दीपक हैं, जो अज्ञान के अंधकार को मिटाकर ज्ञान की रोशनी फैलाते हैं। हमारे वेद-पुराणों में कहा गया है गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय. अर्थात यदि गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े हों, तो पहले किसे प्रणाम करें? उत्तर है गुरु को, क्योंकि वही हमें ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग दिखाते हैं।
गुरु केवल शैक्षिक संस्थाओं में पढ़ाने वाले शिक्षक ही नहीं होते, बल्कि हमारे माता-पिता, जीवन में सही सलाह देने वाले मित्र, समाज के मार्गदर्शक, या हमारे आध्यात्मिक गुरु भी हो सकते हैं। आज के दिन हम अपने सभी गुरुओं का धन्यवाद करते हैं, जिन्होंने हमारे जीवन को दिशा दी, प्रेरित किया और संबल प्रदान किया। आइए इस गुरु पूर्णिमा पर हम सभी अपने गुरु को नमन करें और यह संकल्प लें कि उनके दिखाए मार्ग पर चलकर एक बेहतर इंसान बनें।
महर्षि वेदव्यास और गुरु पूर्णिमा का आरंभ गुरु पूर्णिमा का पर्व महर्षि वेदव्यास को समर्पित है। उन्होंने महाभारत की रचना की, वेदों को चार भागों में विभाजित किया और पुराणों की रचना की। उनके शिष्यों ने आषाढ़ पूर्णिमा के दिन उन्हें श्रद्धांजलि दी थी। तभी से यह दिन गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाने लगा। वेदव्यास को आदि गुरु माना जाता है। श्री राम और गुरु वशिष्ठ की कथा भगवान श्रीराम बचपन से ही अत्यंत आज्ञाकारी और मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते थे। इसका कारण था उनके गुरु वशिष्ठ से मिला अनुशासन, ज्ञान और मूल्य। श्रीराम ने अपने जीवन के हर निर्णय में गुरु की सीख का पालन किया, चाहे वह वनवास हो, या युद्ध का धर्म। यह दर्शाता है कि एक सच्चा शिष्य अपने गुरु के बताए मार्ग से कभी विचलित नहीं होता।
- एकलव्य की अद्भुत गुरु भक्ति :
महाभारत काल की प्रसिद्ध कहानी एकलव्य, जो गुरु द्रोणाचार्य को दूर से देख-देखकर धनुर्विद्या सीखता रहा। जब द्रोणाचार्य ने उसकी परीक्षा ली, तो वे चकित रह गए। एकलव्य ने कहा कि आपने तो मुझे स्वीकारा नहीं, फिर भी मैंने आपको ही गुरु माना। जब गुरु दक्षिणा में द्रोण ने उसका अंगूठा माँगा, तो वह बिना हिचके दे दिया। यह कहानी गुरु भक्ति की पराकाष्ठा है।
- विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस की कहानी स्वामी विवेकानंद ने युवा अवस्था में प्रश्न किया था:
क्या आपने भगवान को देखा है?" तब गुरु रामकृष्ण परमहंस ने उत्तर दिया "हाँ, मैंने देखा है, वैसे ही जैसे मैं तुम्हें देख रहा हूँ।" इस उत्तर ने विवेकानंद का जीवन बदल दिया। गुरु की कृपा से वे संन्यासी बने और पूरे विश्व में भारत का नाम रोशन किया।
- गुरु के बिना ज्ञान अधूरा है :
एक सच्ची सीख एक बार एक बालक ने सोचा कि वह स्वयं ही सबकुछ पढ़-लिखकर ज्ञानी बन सकता है। उसने पुस्तकों से ज्ञान लेने की कोशिश की, लेकिन समय के साथ वह भ्रमित हो गया। तब एक वृद्ध संत ने उसे समझाया पुस्तकें रास्ता दिखा सकती हैं, परंतु सही दिशा देने वाला केवल गुरु होता है। तभी वह बालक समझ पाया कि ज्ञान तभी सार्थक है जब गुरु मार्गदर्शक हों।आज की पीढ़ी और युवाओं के लिए गुरु पूर्णिमा का संदेश सिर्फ परंपरा से जुड़ने का नहीं, बल्कि आधुनिक जीवन में मूल्यों, अनुशासन और मार्गदर्शन की अहमियत को समझने का है। यह रहा एक सशक्त और भावनात्मक संदेश, जो युवाओं को सोचने पर मजबूर कर देगा
- गुरु पूर्णिमा पर युवाओं के लिए संदेश :
आज की तेज़ रफ्तार दुनिया में हम बहुत कुछ सीख रहे हैं टेक्नोलॉजी, डिजिटल स्किल्स, मार्केटिंग, सोशल मीडिया पर क्या हमने जीवन जीने की कला सीखी है? युवा आज ज्ञान तो पा रहे हैं, पर बुद्धिमत्ता और विवेक की राह अक्सर अनदेखी रह जाती है। इसलिए आज के युग में भी गुरु की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो गई है।
- गुरु सिर्फ पढ़ाने वाला नहीं होता, वो जीवन जीना सिखाता है :
वो हमें बताता है कि कब चुप रहना है, कब बोलना है, और सबसे ज़रूरी कब रुककर खुद को समझना है। आज की पीढ़ी को यह समझना बेहद जरूरी है हर चीज़ गूगल पर नहीं मिलती। कुछ अनुभव सिर्फ गुरु से मिलते हैं। फास्ट सक्सेस की चाह में हम गहराई खो रहे हैं। गुरु वही गहराई सिखाता है।
What's Your Reaction?






