नरेश मीना की जन क्रांति यात्रा बनी ग्रामीण क्रांति की आवाज, पग-पग पर‌ जुट रहा समर्थन

News By MHR NEWS Media House Rajasthan

Jul 25, 2025 - 19:57
Jul 25, 2025 - 20:19
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नरेश मीना की जन क्रांति यात्रा बनी ग्रामीण क्रांति की आवाज, पग-पग पर‌ जुट रहा समर्थन

विशेष रिपोर्ट | रवि सामरिया स्वतंत्र पत्रकार। कोटा/बारां। नंगे पैर चलूंगा पर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई नहीं छोड़ूंगा यह नारा अब सिर्फ एक युवा की प्रतिज्ञा नहीं, बल्कि राजस्थान के बारां ज़िले में जनआंदोलन की पहचान बन चुका है। नरेश मीना एक साधारण किसान परिवार से निकलकर आज जनभावनाओं की आवाज़ बन चुके हैं।

राजस्थान की राजनीति में जहां एक ओर वंशवाद और पूंजी प्रभाव बढ़ रहा है, वहीं नरेश मीना जैसे जननायक एक नई आशा की किरण हैं। उनकी जन क्रांति यात्रा ने यह साबित कर दिया कि जनता को केवल वादे नहीं, बल्कि साथ चलने वाला नेता चाहिए। जन समर्थन और जन संवाद को देख यह साफ हो गया कि नरेश मीना अब एक नाम नहीं, एक जन आंदोलन का प्रतीक बन चुके हैं। 

- संघर्ष की ज़मीन से जनसंघर्ष तक बारां जिले के नयागांव कस्बे में जन्मे नरेश मीना का जीवन प्रारंभ से ही सामाजिक विषमताओं, भ्रष्टाचार और ग्रामीण उपेक्षा के विरुद्ध विद्रोह की गाथा रहा है। छात्र राजनीति से जनसेवा तक उन्होंने हर मोर्चे पर आवाज़ बुलंद की।

राजस्थान विश्वविद्यालय के पूर्व महासचिव रहे नरेश मीना ने न केवल छात्र हितों के लिए लड़ाई लड़ी, बल्कि ग्रामीण भारत की अनकही पीड़ा को राष्ट्रीय मंच तक ले जाने का बीड़ा उठाया। नरेश मीना कहते हैं मैं सत्ता के लिए नहीं, समाज के लिए लड़ रहा हूं। मेरी लड़ाई गाँव के उस अंतिम व्यक्ति के सम्मान और अधिकार के लिए है, जो आज भी उपेक्षित है। 

- जन क्रांति यात्रा बारिश में भी न थमने वाला काफ़िला 21 जुलाई से शुरू हुई जन क्रांति यात्रा ने बारां के दर्जनों गांवों कामखेड़ा, कवाई, छिपाबड़ौद, शाहबाद, सालपुरा, अटरू और कई गांवों को जोड़ते हुए प्रशासनिक अनदेखी, भष्टाचार और शिक्षा-स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर सीधा संवाद स्थापित किया। तेज़ बारिश और कीचड़ में भी हज़ारों की भीड़, नंगे पाँव चल रहा जन नेता, और हाथों में संविधान, बाबा साहेब व भगत सिंह के चित्र यह सब दर्शाता है कि यह यात्रा महज़ एक राजनीतिक रैली नहीं, बल्कि एक सामाजिक चेतना का आंदोलन है। नरेश मीना की विचारधारा डॉ. भीमराव अंबेडकर, भगत सिंह और स्वामी विवेकानंद से गहराई से प्रभावित है। उनके पोस्टर, मंच और नारों में यह स्पष्ट झलकता है।

- क्या कहते हैं ग्रामीण : पहली बार कोई हमारे गाँव की गलियों में बिना चमचमाती गाड़ी के आया है, नंगे पाँव, हमारे जैसा… यही तो असली नेता है। - रामनारायण मीणा, किसान, कवाई

नरेश भाई कोई वोट मांगने नहीं आए, बल्कि हमें हमारा हक़ याद दिलाने आए हैं। - सरोज बाई, गृहणी, मलारनाडूंगर

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